कविता आमंत्रण

, by शब्दांकन संपादक

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1 comment:

  1. मुझे आज भी याद है वो मधुर स्मृति जब पिताजी मुझे स्कूल जाने के लिए तैयार करते थे , नहलाते थे कपडे पहनाते थे और स्कूल के दरवाजे पर छोड़ कर कहते " बेटा , अपना ख्याल रखना" और मैं बेपरवाह बाय -बाय कह देता . जब बड़ा हुआ तो पहली नौकरी दिल्ली मैं लगी , पिताजी ने आशीर्वाद के रूप में खर्चे के लिए पैसे दिए और कहा " बेटा , अपना ख्याल रखना " और मैं दबंग सा मुस्कुराता हुआ चला गया . और बड़ा हुआ शादी हो गयी . बेटा और बेटी भी हो गई। हम जब भी पिताजी से मिलने आगरा जाते पिताजी वापस आते वक़्त आशीर्वाद देते और कहते कि " अपना और बच्चों का ख्याल रखना " और हम सुब पिता जी की यादों के साथ वापस आ जाते।



    उस दिन हम सबने मिल कर पिताजी को अंतिम स्नानं कराया कपडे पहनाये और उनकी विदाई की सारी तय्यारी करके पोइया घाट चल दिए . रास्ते भर पिताजी की साथ बिताये पल याद आते रहे पोयिया घाट पर रीती रिवाजों के साथ उनका दाह संस्कार कर दिया गया और हम सब वापस आ गए . दो दिन के बाद सुबह जब हम फूल चुगने गए तो घना कोहरा था मैंने व भाई ने फूल चुगे व उनको विसर्जित करने के लिए यमुने के तट पर चल दिए . सम्मानपूर्वक फूल विसर्जित करने के बाद जब मैं वापस जाने के लिए मुडा तो एहसास हुआ पिताजी ने कहा "बेटा , अपना ख्याल रखना ".......... और मैं आज उन्हें शांति के साथ अंतिम विदाई दे कर आ गया उनके कहे शब्द आज भी साथ हैं " बेटा ........................".


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