न्याय - शब्दांकन (प्रो० चेतन)

, by शब्दांकन संपादक

कि सुखनवरों का खून क्यूँ कर ठण्डा हो गया है
दर्द अंगड़ाई नहीं लेता ये क्या हो गया है ?

क़त्ल या हो कोई बे-आबरू तुम्हें क्या मतलब ?
ए खुदा तू ही बता, इन्सां को क्या हो गया है।

कितनी क़ुरबानी चाहते हो कि चमन जल जाए
क़ि नींद टूट जाए तुम्हारी, होश हो गया है। 
प्रो० चेतन प्रकाश 'चेतन'
 

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