दो कवितायेँ - अनुपमा तिवाड़ी
अनुपमा तिवाड़ी
एम ए ( हिन्दी व समाजशास्त्र ) तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक ।पिछले 24 वर्षों से शिक्षा व सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं में कार्य रही हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन राजस्थान में संदर्भ व्यक्ति के रूप में कार्यरत ।देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनेक कवितायें व कहानियाँ प्रकाशित। प्रथम कविता संग्रह "आईना भीगता है" बोधि प्रकाशन जयपुर से 2011 में प्रकाशित ।
बहुत हुआ अब
बस करो !!
बहुत हुआ अब
खत्म नहीं होती क्रूरता,
आदम की।
कहते हैं, मृत्यु के बाद सब खत्म।
पर यह खत्म कब होगा ?
सिर काट कर ले जाना भी किसी देशभक्त का
अपने को देशभक्त कहलवाने के लिए क्रूर हँसी जैसा है।
विजय पताका फहराने के समान है।
वो आदम, सिर काट कर ले जा सकता है
पर, मृत्यु के बाद भी
एक माँ को सिर चाहिए अपने बेटे का
एक पत्नि को अपने पति का
एक बच्चे को अपने बाप का।
आदम, बलात्कार कर फेंक सकता है
किसी स्त्री देह के टुकड़े, जंगल में
जो मृत्यु के बाद भी शिनाख्त न कर पाए उसकी
ओह ! इंसान तुम धरती पर आओ
तुम्हारे चोले बिक रहे हैं,
यहां बाजार में
कुछ सस्ते, कुछ महंगे।
चोले के अंदर का आदमी मार सकता है, हिस्सा
बच्चों, दलितों, आदिवासियों, गरीबों और स्त्रियों का
चमकाता है वो हर दिन चेहरा
खून पी - पीकर
पर दिल की कालिमा उसके चेहरे पर आती जाती है
तुम देखना
ज़रा गौर से उसका चेहरा ।
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